कुरुक्षेत्र युद्ध की समाप्ति के बाद भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटकर अपने स्वर्गारोहण की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण के सुझाव पर युधिष्ठिर उनके पास राजधर्म की दीक्षा लेने के लिये गए।
पितामह और युधिष्ठिर का यह संवाद महाभारत के शान्ति पर्व के अंतर्गत राजधर्मानुषाशन पर्व में मिलता है, जिसे प्रायः भीष्म नीति ने नाम से जाना जाता है।
सूत्रधार की इस शृंखला के द्वारा हम महान पितामह भीष्म की उस सीख को रोचक तरीके से आप तक पहुंचाएंगे।
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कुरुक्षेत्र युद्ध की समाप्ति के बाद भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटकर अपने स्वर्गारोहण की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण के सुझाव पर युधिष्ठिर उनके पास राजधर्म की दीक्षा लेने के लिये गए।
पितामह और युधिष्ठिर का यह संवाद महाभारत के शान्ति पर्व के अंतर्गत राजधर्मानुषाशन पर्व में मिलता है, जिसे प्रायः भीष्म नीति ने नाम से जाना जाता है।
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राजा को सदा ही उद्योगशील अर्थात् कर्मठ होना चाहिये। जो राजा उद्योग को छोड़कर बेकार बैठा रहता है उसकी प्रशंसा नहीं होती। इस विषय में शुक्राचार्य ने यह श्लोक कहा है,
द्वाविमौ ग्रसते भूमिः सर्पो बिलशयानिव।
राजानं चाविरोद्धारं ब्राह्मणं चा प्रवासिनम्।।
मतलब जैसे साँप बिल में रहने वाले चूहों को निगल जाता है, उसी प्रकार शत्रुओं से युद्ध न करने वाले राजा और विद्याध्ययन न करने वाले ब्राह्मण को पृथ्वी निगल जाती है। अर्थात् वे बिना कुछ कर्म किये ही मृत्यु को प्राप्त होते हैं।
जो सन्धि के योग्य हो उससे सन्धि और जो विरोध करने योग्य हो उसका डटकर विरोध करना चाहिये।
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भीष्म नीति Bheeshma Neeti
कुरुक्षेत्र युद्ध की समाप्ति के बाद भीष्म पितामह बाणों की शय्या पर लेटकर अपने स्वर्गारोहण की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब श्रीकृष्ण के सुझाव पर युधिष्ठिर उनके पास राजधर्म की दीक्षा लेने के लिये गए।
पितामह और युधिष्ठिर का यह संवाद महाभारत के शान्ति पर्व के अंतर्गत राजधर्मानुषाशन पर्व में मिलता है, जिसे प्रायः भीष्म नीति ने नाम से जाना जाता है।
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