एक ज़रा सी बात है जो तुम समझ गये तो क्या बात है ।
एक ज़रा सी बात पर, जो तुम ना समझे तो बस ख़ाक है ॥
एक ज़रा सी तो यादें हैं जो वहशत की तरह, जेहन में महफूज़ है I
जो तुम उसे अपनी जीत समझ लिये तो क्या बात है
और न समझे तो बस ख़ाक है ॥
एक ज़रा सी तो बात है जो मैं सख्त कँटीली रास्तों पर, बेतहाशा भागूं ।
अगर तुम मेरे रिसते पाँव के छाले में न उलझे/ देखे तो क्या बात है ॥
जो तुम मुझे एक हारा हुआ राही ना समझे तो क्या बात है,
मैं खुद से जुझता, लड़ता नज़र आऊं तो मुझे पागल समझना
मेरी शोहरत को तो तुम रुसवाई, और मेरे दुखड़े को बस एक अफ़साना समझना
बस एक ज़रा सी तो बात है जो तुम समझ गये तो क्या बात है
और ना समझे तो ख़ाक है
जो मैं सजदे में सर झुकाकर उठाऊं, तो तुम कहो की ये क्या जुर्रत है ।
जो मैं बारिशों में अपनी आँखें नम करूँ तो समझो की ये कैसा मातम है ॥
बस एक ज़रा सी तो बात है जो तुम समझ गये तो क्या बात है
और ना समझे तो ख़ाक है
By Anand Kashyap
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