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Pratidin Ek Kavita
Nayi Dhara Radio
961 episodes
17 minutes ago
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।
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Baat Karni Mujhe Mushkil | Bahadur Shah Zafar
Pratidin Ek Kavita
2 minutes
1 week ago
Baat Karni Mujhe Mushkil | Bahadur Shah Zafar

बात करनी मुझे मुश्किल । बहादुर शाह ज़फ़र


बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी

जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी


ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार

बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी


उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू

कि तबीअ'त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी


अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़

सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी


चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन

जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी


क्या सबब तू जो बिगड़ता है 'ज़फ़र' से हर बार

ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी

Pratidin Ek Kavita
कवितायेँ जहाँ जी चाहे वहाँ रहती हैं- कभी नीले आसमान में, कभी बंद खिड़कियों वाली संकरी गली में, कभी पंछियों के रंगीन परों पर उड़ती हैं कविताएँ, तो कभी सड़क के पत्थरों के बीच यूँ ही उग आती हैं। कविता के अलग अलग रूपों को समर्पित है, हमारी पॉडकास्ट शृंखला - प्रतिदिन एक कविता। कीजिये एक नई कविता के साथ अपने हर दिन की शुरुआत।